एक मुठ्ठी ज़मीन; एक टुकड़ा आसमाँ,
थोड़ी सी हसी; थोड़ा सा ग़म मेहरबाँ,
कही प्यार को तरसे,
कही प्यार में डूबा किसी का जहाँ;
हर दिल की उम्मीद के साये में,
ढलता जाए खुशियो का समां ||
चल आज फिर चुरा ले;
कुछ पल की खुशियाँ,
चल आज फिर ओढ़ ले;
वो सुनहरी धूप की चादर,
और लौट चले उस गुलमोहर के तले,
जहा बसता था बचपन;
खेला करते थे आँख मिचोली हम;
खेल खेल में यूही रंग ले,
सतरंगी सपनो की चुनरियाँ ||
आज फिर जीने को जी चाहता है;
हसते हसते रोने को जी चाहता है,
सपनो में फिर खो जाने को जी चाहता है,
क्या पता कल कहाँ ले जाए ज़िन्दगी:
आज सारी ज़िन्दगी जी लेने को जी चाहता है ||
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simply beautiful Dipanwita :-) Look forward to meeting you net weekend :-)
ReplyDeleteThank you Archana. I too am looking forward to meeting you. :)
DeleteSo beautifully weaved. Loved it :)
ReplyDeleteThank you dear :)
DeleteVery Beautiful Poem..Loved it :)
ReplyDeleteThank you MS :)
Deleteबहुत सुंदर भाव.
ReplyDeleteनई पोस्ट : बीते न रैन
Dhanyavaad Rajiv ji. :)
DeleteBeautiful lines :)
ReplyDeleteThank you Leena. Glad you liked it :)
DeleteNostalgia...
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