Friday, 23 October 2015

आज फिर जीने को जी चाहता है

एक मुठ्ठी ज़मीन; एक टुकड़ा आसमाँ,
थोड़ी सी हसी; थोड़ा सा ग़म मेहरबाँ,
कही प्यार को तरसे,
कही प्यार में डूबा किसी का जहाँ; 
हर दिल की उम्मीद के साये में,
ढलता जाए खुशियो का समां ||

चल आज फिर चुरा ले; 
कुछ पल की खुशियाँ,
चल आज फिर ओढ़ ले; 
वो सुनहरी धूप की चादर,
और लौट चले उस गुलमोहर के तले, 
जहा बसता था बचपन;
खेला करते थे आँख मिचोली हम; 
खेल खेल में यूही रंग ले,
सतरंगी सपनो की चुनरियाँ || 

आज फिर जीने को जी चाहता है;
हसते हसते रोने को जी चाहता है,
सपनो में फिर खो जाने को जी चाहता है, 
क्या पता कल कहाँ ले जाए ज़िन्दगी:
आज सारी ज़िन्दगी जी लेने को जी चाहता है || 


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